जिंदगियां लीलती आपराधिक लापरवाही

एक ही महीने में नकली जहरीली शराब की तीसरी घटना ने 120 से ज्यादा लोगों की जिंदगी छीन लीयह दर्दनाक कांड असम के जोरहाट और गोलाघाट जिलों के पांच क्षेत्रों के करीब 40 कि.मी. इलाके की गरीब बस्तियों में कहर बरपा गया। इस त्रासदी का शिकार बने लगभग 400 लोग अस्पतालों में मौत से जझ रहे हैं। इसी महीने के दुसरे सप्ताह में उ.प्र. के सहारनपुर और उत्तराखंड के हरिद्वार में भी 120 से ज्यादा मजदूर-पेशा हमेशा की नींद सो गएपिछले 50 साल में पहली बार एक ही महीने में नकली शराब पीने से इतनी ज्यादा मौतें हुई हैं ।विश्व में हमारा खुशहाली सूचकांक गिर रहा है तो दूसरी ओर हम शराब की खपत के मामले में तेजी से बढ़ रहे हैंइतनी तेजी से कि 2005 से 2016 के बीच यह खपत दोगुनी हो चुका है। मनविज्ञानिक विवेचन बताता है हो चुकी है। मनोवैज्ञानिक विवेचन बताता है कि आनंद-प्रमोद के व्यसन का बीमारी बन जाने का कारण व्यक्ति का मानसिक तनाव, असंतोष और हताशा होता है। हमको इसके कारणों की पड़ताल खुशहाली के विश्व सूचकांक में करनी चाहिए। दुनिया के 155 देशों में हम नीचे खिसककर 133वें पायदान पर आ गए हैं, जबकि एक साल पहले हमारी जगह 122वीं - थीयदि आम आदमी बेचैन-परेशान है तो वह राहत की तलाश में सस्ती शराब ढूढ़ता है। देश में, जहां राज्य सरकारें शाही खर्च पूरे करने के लिए शराब पर भारी- भरकम टैक्स लगाती हों, सस्ती शराब किसी गरीब के लिए सुविधा है। इसका फायदा मुनाफाखोर उठाते हैं। प्रशासन की मिलीभगत से वे बेफिक्र होकर जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं। देश में हर साल दो से तीन हजार लोग जहरीली शराब पीकर हंसती-खेलती जिन्दगी से हाथ धो बैठते हैं। इस दारुण त्रासदी से कुछ दिन पहले उ.प्र. और उत्तराखंड में हुए हादसे से कोई सबक नहीं लिया गया। अकाल मृत्यु का शिकार बनने वालों के अलावा दर्जनों लोग बीमार हैं। लगातार होने वाली ऐसी दुखद घटनाएं निकम्मे प्रशासन, भ्रष्टाचार और सरकारों की जनविरोधी लूट की ओर ध्यान दिलाती हैं। अफ़सोस! हमदर्दी और दिखावटी कानूनी कार्रवाई वाले खोखले उपायों से आगे हम कभी जा ही नहीं पाते। मौत का दुष्चक्र बदस्तूर यूं ही जारी रहता है ।ऐसा ही हादसा 2015 में मुंबई के मालवणी में हुआ था, जिसमें 106 मजदूर जहरीली शराब पीने से मरे?थे। आज भी वहां उसी तरह सस्ती-नकली शराब अब भी बनते हुए मिल जाएगा। ऐस हादसा के त बनते हुए मिल जाएगी। ऐसे हादसों के तत्काल बाद सरकारी मशीनरी छापे और तलाशी का दिखावटी अभियान चलाती है। ज्यादा कोशिश किए बिना ही वह नकली व जहरीली शराब बनाने वाले ठिकानों तक पहुंच जाती है और सैकड़ों- हजारों लीटर जानलेवा पेय नष्ट करने की तस्वीरें लेकर वाहवाही के लिए आ खड़ी होती हैं। अंधाधुंध गिरफ्तारियों के साथ ही जहर के ये सौदागर ओझल हो जाते हैं। कुछ दिनों बाद वे फिर धंधा शुरू कर देते हैं। असम में एक ही दिन में करीब 20 हजार लीटर नकली शराब पकड़ ली गई। क्या इतनी बड़ी मात्रा एक या दो दिन में ही तैयार कर ली गई? अवैध शराब के कारोबार पर निगरानी के लिए सभी प्रदेशों में अलग विभाग कार्यरत हैं। ऐसे हादसों के सामने आने पर इन विभागों से न केवल जवाब तलब किया जाना चाहिए, वरन? इसके लिए उत्तरदायी अधिकारियों कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्रवाई भी की जानी जरूरी है। दनिया में शराब का सबसे बड़ा उपभोक्ता और तीसरा आयातकर्ता भारत है। हालांकि देश में बहत बडे पैमाने पर कारखानों में शराब का उत्पादन होता है। इनमें तैयार की जाने वाली मदिरा का 70 प्रतिशत देश में खप जाता हैफिर भी ज्यादा सस्ता और आसान नशा महैयाकराने के लिए जहरीली वस्तओं से तैयार ऐसे पेय बेचे जाना आम बात हैये ही जानलेवा बन जाते है। देश के आठ राज्य ऐसे हैं. जिनमें ऐसे 70 प्रतिशत हादसों से दो-चार होना पड़ता है। इनमें उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट, आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं।हालिया हादसे बताते हैं कि जिस जहरीले पेय को पीने से इतनी बड़ी संख्या में लोग अकाल मत्य का शिकार बने. उनकी कीमत सिर्फ 10 रुपये से शरू होकर 30 रुपये तक रहती है। शराब सस्ती करने के खिलाफ दलील दी जाती है कि इससे लोग ज्यादा मात्रा में पियेंगे, जिससे सेहत से जड़ी समस्याएं बढ़ेगी. दसरा राजस्व का संकट। राज्य सरकारों की इस पैसा बटोरू लालची नीति ने शराब इतनी महंगी कर दी है कि उस तक पहंच गरीब आदमी के लिए मश्किल हो गई। इस परिस्थिति ने ही सस्ती शराब बनाने के लिए संगठित अपराधी गिरोहों को मौका दिया।