आत भात के मंत्र जाप व जयकार शरद उपाध्याय

शहीदों की चिताओं पर मेले सज गए हैं। मेले हमारी परंपरागत धरोहर है, भावनाओं और जोश में लपेटे शब्दों की पुष्पमालाओं में लिपटे हुए। मेले, जो केवल मेले नहीं होते बल्कि हमारी परंपराओं के निर्वाहक होते हैं। वे ले जाते हैं हमारी आस्था और विश्वास अगली पीढ़ियों तक। इसलिए मेले सज चुके हैं। काव्यात्मक, भावनात्मक, नाना प्रकार के नारों से भरे हुए। वे जानते हैं। मेले, मेले नहीं होते। मेले, केवल एक भीड़ नहीं होती। मेलों में जोश होता है। जोश में ऊर्जा होती है। देशभक्ति की ऊर्जा आगे बढ़ने में बहुत मददगार होती है। अकेली देशभक्ति की ऊर्जा ही बेड़ा पार करने में मददगार हो जाती है। सब जोश से भरे हुए हैं। सब ऊर्जा से ओत-प्रोत हैं। सभी ऊर्जा का दोहन करना चाहते हैं। ऊर्जा एक है, माध्यम अनेक हैं। देशभक्ति की गंगा बह रही है। सब लोग किनारे खड़े हुए हैं। किनारे खड़े हुए लोग लोकतांत्रिक भावनाओं से जुड़े हैं। चुनावी कुंभ का समय है। कुंभ सिर पर ही है। चुनावी पुष्य नक्षत्र है। पुराणों में भी लिखा है कि पुष्य नक्षत्र में गंगास्नान करने वाले का मोक्ष पक्का है। पुण्य सदैव हमें आकर्षित करता है। पुण्य एक शुभ संकल्पना है, जो हमारी स्मृति की गहराइयों में सजा हुआ है। जहां पुण्य होता है, वहां भीड़ आ ही जाती है। फिर कोई पुरानी परंपरा थोड़े ही है। शहीदों के बलिदान पर मेले लगे हैं। भीड़ कुछ अधिक है। शहीदों पर विश्वास शुद्ध है, सात्विक है, भावनाओं से भरपूर है। किनारे खड़े हुए लोकतांत्रिक संत इस विश्वास को भली-भांति जानते हैं। यह विश्वास ही तो उनकी ताकत है। अब ताकत व्यर्थ जाए, यह उन्हें गवारा नहीं। भांति-भांति के जाप हैं, भांति के मंत्र है, भांति-भांति के जयकारे हैंपुण्यों को संचित रखना है। पुण्यों की ऊर्जा व्यर्थ ही विरोधियों के पास न चला जाए। लोकतंत्र में वोट एक शक्ति है। यदि यह विपक्षियों के हाथ में चली जाएगी तो अधर्म की स्थापना होगी। सो सभी पुण्यों को संजोकर वोट आहुति से अपना जीवन सफल बनाना चाहते हैंशहीदों की चिताओं पर हर बरस मेले लगते हैं। मेले लग ही रहे हैं। हम भी उठ खड़े होते हैं। वहां तक एक दिन जाने का त्याग भी कम नहीं होता। हम भी अपने हाथों से मोमबत्तियां और दीप जलाकर अपनी संवेदना प्रकट कर देते हैं। आजकल के भौतिक जमाने में यह भी कोई कम नहीं होता। कौन कम्फर्ट जोन छोड़ना चाहता है। अब और करें भी क्या। शहीदों की चिताओं पर तो मेले लगेंगे ही। पर कब तक। बस एक दिन चुनावी कुंभ खत्म होगा। नक्षत्र बदलेंगे तो शहीदों की समाधियां वीरान होगी। बस वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां रहेगा। कब तक, जब तक कोई और शहीद न होगा। बस तब तक। ーーーーーーーーーーーー----